बस एक पूड़ी और लीजिए हमारे कहने से
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दामादों की ससुराल में बड़ी आवाभगत हुआ करती थी उस जमाने में। पहली बार पत्नी
को लेने रात भर की बस यात्रा करके जब ससुराल पहुंचे तो भूख लग आई थी। ससुराल
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4 टिप्पणियाँ:
Well said.
शानदार पोस्ट और शानदार कविता।
कविता बहुत ही शानदार है : मैंने साध्वी ऋतंभरा के प्रवचनों में सुनी थी, बहुत ही तेजोमय स्वर था उनका....
यह महिला नहीं है बाबु साहब, यह बालिका है और इसके शब्दों में भी आग है, यह साध्वी ऋतंभरा के प्रवचनों में कई बार साथ रहती है और उन्हीं के वात्सल्य ग्राम की साध्वी हैं...
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