बस एक पूड़ी और लीजिए हमारे कहने से
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दामादों की ससुराल में बड़ी आवाभगत हुआ करती थी उस जमाने में। पहली बार पत्नी
को लेने रात भर की बस यात्रा करके जब ससुराल पहुंचे तो भूख लग आई थी। ससुराल
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Saturday, October 10, 2009
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9 टिप्पणियाँ:
yakinan aapka shirshak sahi hai..
satyam shivam sundaram
जंग कैसी...सब प्यार से रहो. :)
चलिए, जंग की सूरत तो बदली। अब मोहब्बत का मौका तो रहेगा।
क्या कहूँ!
बी एस पाबला
इन्हें बंदूकों की जरूरत ही कहाँ है? दुश्मन तो सूरत देखकर ही मर जायेगा. अगर बच गया तो नजर के तीर उसे फिर उठने लायक नहीं छोडेंगे. हा हा हा .........
बिन गोली मर जाएं :)
आप सभी की टिप्पणीयों केलिए आभार, शुक्रिया।
मोशनब्लॉग
अगर यह सब मैदान में आ जाएँ तो फिर घर में कौन रहे और अगली नस्लें कहाँ से आयें गी ??
वाह दिल बाग -२ हो गया :)
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